Twitter
Advertisement
  • LATEST
  • WEBSTORY
  • TRENDING
  • PHOTOS
  • ENTERTAINMENT

आखिर राजा श्रेणिक ने एक आम चोर को क्यों अपना गुरु मान लिया

Inspirational Story: आम चोर अपनी ओर आकर्षित करने की विद्या जानता था. राजकुमार अभयकुमार के कहने पर राजा श्रेणिक ने उस आम चोर से आकर्षणी विद्या सीखना शुरू किया. इस तरह राजा श्रेणिक का गुरु बन गया एक आम चोर. खास बात यह कि कहानी का यह हिस्सा हमें गुरु के महत्त्व और उनके प्रति सम्मान करने की सीख देता है.

Latest News
आखिर राजा श ्रेणिक ने एक आम चोर को क्यों अपना गुरु मान लिया

ऊंचे आसन पर बैठ कर चोर ने सिखाया मंत्र.

FacebookTwitterWhatsappLinkedin

कहानी के पहले हिस्से में आपने पढ़ा कि राजकुमार अभयकुमार ने आम चोर को अपनी चतुराई से पकड़ लिया. उस चोर को महाराज श्रेणिक के राज दरबार में पेश किया गया. जहां उसकी चोरी पर सजा तय होनी है. 
कहानी की इस अंतिम किस्त में पढ़ें कि चोर को क्या सजा सुनाई गई, क्या उसे मृत्युदंड दिया गया या उसके गुण के कारण राजा ने उसे माफ कर दिया.

विनय से विद्या (अंतिम किस्त)

आम चुराने के आरोप में गिरफ्तार व्यक्ति राजदरबार में हाजिर किए जाने के बाद बोला "महामंत्री जी! मैं पेशेवर चोर नहीं हूं. सच मानिए, मेरा नाम मातंग है. मैंने वह आम अपनी गर्भवती पत्नी की इच्छा पूरी करने के लिए चुराए थे. क्योंकि इस मौसम में आम नहीं मिलते और वह सिर्फ राजमहल के बाग में फले थे. मुझे क्षमा कर दीजिए."

DNA Lit की और सामग्री पढ़ने के लिए क्लिक करें.

राजा ने हुक्म दिया "इसका अपराध माफ करने लायक नहीं है. इसे मौत की सजा दी जाए."

अभयकुमार ने सोचा इसका अपराध इतना भी गंभीर नहीं की इसे मौत की सजा दी जाए.

अभयकुमार ने कुछ पल सोचा और मातंग से पूछा "एक बात बताओ– उद्यान के चारों ओर ऊंची दीवार होने और दरवाजे पर इतना कड़ा पहरा होने के बावजूद तुमने ये आम चुराए कैसे?"

एआई की नजरों में ऐसे राज दरबार में लाया गया आम चोर.

"हुजूर, मैंने आकर्षणी विद्या सीखी है. उसी का इस्तेमाल कर मैंने फलों की डाल को अपनी ओर आकर्षित कर लिया और उस पर से आम तोड़ लिए." मातंग ने सिर झुकाकर जबाब दिया.

अभयकुमार ने राजा से कहा "राजन, मेरी सलाह है कि आप मातंग से यह दुर्लभ विद्या सीख लें. उसके बाद ही इसे दंड दिया जाए."

श्रेणिक को अभयकुमार की बात पसंद आई. उन्होंने मातंग से आकर्षणी विद्या सीखना शुरू कर दिया. मातंग एक आसन पर बैठ गया और राजा को मंत्र पाठ सिखाने लगा. लेकिन राजा मंत्र बार-बार भूल जाते. उन्होंने मातंग से गुस्से में कहा "तुम मुझे ठीक से विद्या नहीं सिखा रहे हो."

अभयकुमार ने कहा "राजन, गुरु का स्थान शिष्य से हमेशा ऊंचा होता है. शिष्य गुरु की विनय करके ही विद्या सीख सकता है."

ऊंचे आसन पर बैठे राजा और गुरु का आसन नीचे.

श्रेणिक अभय का इशारा समझ गए. उन्होंने मातंग को सिंहासन पर बिठाया और स्वयं उसके सामने नीचे खड़े हो गए. अबकी बार जब मंत्र जाप करना शुरू किया तो कुछ समय में ही उन्हें मंत्र याद हो गया.

विद्या सीखने से श्रेणिक प्रसन्न हो गए और उन्होंने कहा "तुमने हमें विद्या सिखाई है और इसीलिए अब आपका दर्जा गुरु का है, गुरु को इतने सामान्य अपराध के लिए दंड नहीं दिया जा सकता."

उन्होंने मातंग को सम्मानपूर्वक यथोचित धन दे कर विदा कर दिया.
(समाप्त)

'विनय से विद्या' की पहली किस्त

देश-दुनिया की ताज़ा खबरों Latest News पर अलग नज़रिया, अब हिंदी में Hindi News पढ़ने के लिए फ़ॉलो करें डीएनए हिंदी को गूगलफ़ेसबुकट्विटर और इंस्टाग्राम पर.

Advertisement

Live tv

Advertisement

पसंदीदा वीडियो

Advertisement