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Pushp Ki Abhilasha: अंग्रेजी हुकूमत ने देश के प्रिय कवि-पत्रकार माखनलाल चतुर्वेदी को राजद्रोह के केस में गिरफ्तार कर बिलासपुर सेंट्रल जेल के बैरेक नंबर 9 में रखा था. 8 महीने की सजा काटने के दौरान जेल में ही माखनलाल ने 28 फरवरी 1922 को 'पुष्प की अभिलाषा' कविता लिखी.
Updated : Feb 22, 2024, 03:04 PM IST
जेल में बंद एक देशभक्त कैदी ने 1921 में एक ऐसी कविता लिखी, जिसने अंग्रेजी हुकूमत की नींद उड़ा दी और आजादी के दीवानों में जोश भर दिया. यह कैदी कोई और नहीं बल्कि लेखक, कवि और पत्रकार पंडित माखनलाल चतुर्वेदी (Makhanlal Chaturvedi) थे. और जिस कविता ने अंग्रेजी शासन की चूलें हिला दी थी, वह थी - पुष्प की अभिलाषा (Pushp ki Abhilasha).
वह दौर असहयोग आंदोलन का था. जालियांवाला बाग हत्याकांड को अंग्रेज अंजाम दे चुके थे. देश के लोगों में जबर्दस्त रोष था. इस रोष को आजादी के जोश में बदलने की मंशा से भरे नेता, पत्रकार और साहित्यकार अपने-अपने स्तर पर काम कर रहे थे.
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एआई की परिकल्पना में भाषण देते माखनलाल चतुर्वेदी.
इसी समय कवि-पत्रकार माखनलाल चतुर्वेदी ने जून की चिलचिलाती गर्मी में बिलासपुर के शनिचरी बाजार के मंच पर ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ जबर्दस्त भाषण दिया. इस भाषण ने उस सभा में मौजूद तमाम श्रोताओं को जोश से भर दिया. यहां अपना काम खत्म कर माखनलाल चतुर्वेदी जबलपुर चले गए. लेकिन इस भाषण से तिलमिलाए अंग्रेजों ने 5 जुलाई को जबलपुर से उन्हें गिरफ्तार कर लिया. उन पर राजद्रोह का मुकदमा चलाया गया.
गिरफ्तारी के बाद माखनलाल चतुर्वेदी को बिलासपुर सेंट्रल जेल के बैरक नंबर 9 में रखा गया था. जेल के रजिस्टर में इस आजादी के दीवाने के नाम के सामने लिखा गया था - कैदी नंबर 1527, पिता - नंदलाल, उम्र - 32 वर्ष, निवास - जबलपुर. उनका क्रिमिनल केस नंबर 39 था. जेलर की निगाह में माखनलाल का नाम कैदी नंबर 1527 था, लेकिन अंग्रेजी हुकूमत जानती थी कि यह कैदी सामान्य कैदी नहीं है, बल्कि इसमें आजादी की ऐसी लपट है जो अंग्रेजी सत्ता को झुलसा सकती है. नतीजतन माखनलाल चतुर्वेदी को राजद्रोह के आरोप में 8 महीने कठोर कारावास की सजा सुनाई गई.
तो अंग्रेजों के इसी कैदी नंबर 1527 और देश के प्रिय कवि-पत्रकार माखनलाल चतुर्वेदी ने जेल के बैरेक नंबर 9 में 28 फरवरी 1922 को 'पुष्प की अभिलाषा' कविता लिखी. तो यह मशहूर कविता एक बार फिर पढ़ें -
चाह नहीं मैं सुरबाला के
गहनों में गूँथा जाऊँ,
चाह नहीं, प्रेमी-माला में
बिंध प्यारी को ललचाऊँ,
चाह नहीं, सम्राटों के शव
पर हे हरि, डाला जाऊँ,
चाह नहीं, देवों के सिर पर
चढ़ूँ भाग्य पर इठलाऊँ।
मुझे तोड़ लेना वनमाली!
उस पथ पर देना तुम फेंक,
मातृभूमि पर शीश चढ़ाने
जिस पथ जावें वीर अनेक।
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